Wednesday 6 February 2019

हिमालय के एक तिहाई ग्लेशियर पर खतरा !

   खबर है कि फिलहाल चल रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयासों में सफलता मिल भी जाती है तो करीब एक तिहाई हिमालयी ग्लेशियर को बचाना मुश्किल होगा। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है।

  खबर है कि हिंदू कुश हिमालय एसेसमेंट नाम के अध्ययन में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक हम हिमालय पर्वत के ग्लेशियरों का बड़ा हिस्सा गंवा चुके होंगे जो करीब 1.9 अरब लोगों के पीने के पानी का स्रोत है।
   खबर है कि काठमांडू में स्थित एक संस्था की अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगर विश्व भर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय सफल नहीं होते हैं, तब तो इन ग्लेशियरों पर और भी ज्यादा बुरा असर होगा। अनुमान के मुताबिक, सन 2100 आते आते हम इसका करीब दो-तिहाई हिस्सा खो देंगे।
  खबर है कि इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवेलपमेंट का कहना है, "ग्लोबल वॉर्मिंग लगातार इन जमे हुए ग्लेशियर से ढके हिंदू कुश पहाड़ों की चोटी को गलाने में लगी है। एक सदी से भी कम में यह नंगे पहाड़ बन जाएंगे जो कि आठ देशों से होकर गुजरते हैं।"
  खबर है कि पांच सालों तक चली इस अध्ययन में हिंदू कुश क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के असर को समझने की कोशिश की गई। यह इलाका एशिया के आठ देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से होकर गुजरता है। खबर है कि इसी इलाके में दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां भी हैं। वे सारे ग्लेशियर भी जिनसे सिंधू, गंगा, यांग्सी, इरावडी और मेकॉन्ग नदियों में पानी आता है।
   खबर है कि अनुमान लगाया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से इलाके में बाढ़ आने से लेकर, वायु प्रदूषण बढ़ने और ग्लेशियरों में काले कार्बन और धूल के जमने जैसे बदलाव दिखेंगे. बांग्लादेश की राजधानी ढाका की एक पर्यावरण संस्था, इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट ने इस रिपोर्ट के नतीजों को "बहुत खतरनाक" बताया है।
   खबर है कि खासकर बांग्लादेश जैसे देशों के लिए. इस अध्ययन को रिव्यू करने वाले विशेषज्ञों में से एक ने बताया, "सभी प्रभावित देशों को इस आने वाली परेशानी से निपटने के उपायों को वरीयता देनी चाहिए, इससे पहले कि ये बड़ा संकट बन जाए।"
  खबर है कि अध्ययन में लिखा है कि अगर 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के हिसाब से इस सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ने देने का लक्ष्य पूरा भी कर लिया जाता है, तो भी इलाके के एक तिहाई ग्लेशियर नहीं बचेंगे. और अगर बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सेल्सियस तक होती है, तो भी दो तिहाई ग्लेशियर नहीं रहेंगे।   
 खबर है कि इसलिए अब तक सोचे गए उपायों से भी आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन होने से रोकने के नए और कारगर उपाय खोजने होंगे।

Monday 4 February 2019

जर्मन में बच्चों को कचरा प्रबंधन की शिक्षा !

   खबर है कि जर्मन में बच्चों को कचरा प्रबंधन की शिक्षा परिवार से ही प्रारम्भ हो जाती है। जर्मनी में बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से कचरे के प्रबंधन के बारे में शिक्षा दी जाती है। 

  खबर है कि यह ट्रेनिंग मां बाप, दादा दादी और शिक्षक देते हैं। रोजाना उन्हें छोटी छोटी बातें सिखाई जाती है, जिसे वह बड़े होकर भी नहीं भूलते।
   खबर है कि तकनीक के साथ जर्मनी साफ सड़कों, साफ फुटपाथ और साफ नदियों के लिए मशहूर है। कचरा रिसाइक्लिंग के मामले में जर्मनी किसी और देश से कहीं आगे हैं। शुरुआती स्तर पर ही कचरे को बांट लिया जाता है ताकि आगे की समस्या से बचा जा सके।
  कचरे का विभाजन: घर पर ही अलग अलग डिब्बों में प्लास्टिक, कागज, कांच और रसोई के कचरे को अलग कर लिया जाता है। इन कचरों को घर के बाहर रखे रंग बिरंगे डिब्बों में फेंका जाता है। जर्मनी के करोड़ों घरों में ऐसी ही प्रणाली है।
  अलग अलग डिब्बे: घर के बाहर पीले, हरे, ग्रे और नीले रंग के डब्बे होते हैं। डिब्बों के रंग के मुताबिक कचरा डाला जाता है। जैसे हरे डिब्बे में रसोई से निकले वाला कचरा जिसका खाद बनाया जाता है और पीले डिब्बे में प्लास्टिक का कचरा।
  कचरा फीस: परिवार के सदस्य के हिसाब से हर घर से एक रकम वसूली जाती है। यह रकम वह कंपनी वसूलती जिसका जिम्मा घर से कचरा उठाने का होता है। उसको सही तरीके से निपटाने का होता है।
  मशीन भी-झाड़ू भी: आम तौर पर घर के बाहर कचरे की सफाई के लिए जर्मनी में झाड़ू का इस्तेमाल होता है। लेकिन सड़कों के लिए रोड स्वीपिंग मशीन है जो सड़कों को चमका देती हैं। फुटपाथ के लिए हैंड हेल्ड ब्लोअर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन से पत्तों को बड़ी आसानी के साथ इकट्ठा किया जाता है।
  रिसाइक्लिंग: जर्मनी में जिस तरह से कागज और प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है उसी तरह से इनको रिसाइकिल भी किया जाता है। दफ्तर, घर और रेस्तरां में कागज के तौलिए का इस्तेमाल होता है। बाद में इन्हें दोबारा रिसाइकिल कर दिया जाता है।
  प्लास्टिक कचरा: कोल्ड ड्रिंक की बोतलें और बीयर की बोतलों को वापस स्टोर में लौटाने की सुविधा होती है। जिससे बेवजह कचरा नहीं जमा होता। बेकार बोतलों के पैसे भी मिल जाते हैं।
  शिक्षा-प्रशिक्षण:जर्मनी में बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से कचरे के प्रबंधन के बारे में ट्रेनिंग दी जाती है। यह ट्रेनिंग मां बाप, दादा दादी और शिक्षक देते हैं। रोजाना उन्हें छोटी छोटी बातें सिखाई जाती है। जिसे वह बड़े होकर भी नहीं भूलते।